माँ ! ना मारो मुझे ,
आवाज़ मुझे ये आयी
क्यू ना मारू तुझे
कहकर ताव मे
मैं आयी
बेटी हूँ मैं तेरी
हूँ तेरी ही परछाई
हूँ तेरी ही परछाई
कैसे भूल गयी ये तू
तेरे अंदर ही
हूँ मैं समायी
हिस्सा हूँ मैं तेरा
हैं तेरा
ही अंश मुझमे
जीने की हैं आस मुझको
आना चहती हूँ
मिलने तुझको
यहाँ से देखा करती हूँ
स्नेह और
ममता देती है जो तू उनको
मैं भी चाहती हूँ
पाना उसी
ममता भरे आंचल को
क्या नही हक़ मुझे कि पा सकू तेरा प्यार
क्या तेरे
प्यार पे हैं सिर्फ भाईयो का अधिकार
बताना होगा तुझे कि गलती क्या है मेरी
अपने
ही अंश से नारज़गी कैसी ये तेरी
माँ ! मैं बहुत प्यारी हूँ मार ना यूँ मुझे
भर दुगी तेरे
आगन को अपनी किलकारियो से
बेटी! मैं कहाँ गलत हूँ मुझे बता
पेहले सुन मेरी
बात फिर तर्क़ बिठा
मानती हूँ कि धरती-संसार है बहुत मनभावन
बिल्कुल तेरे मन
की तरह है कोमल और पावन
प्राण बसे हैं तुझमे मेरे, तू मेरी है
राजकुमारी
डरती हूँ कि
तुझे लग जाये ना नज़र हमारी
तेरी कोमलता का यूँ किसी पे असर ना होगा
जिगर का
टुकडा है तू मेरा कोइ इसको समझ ना सकेगा
पल पल घूरेंगी आंखे
ख़तरा होगा तुझे
पर
जाएगी तू जिस तरफ
भेडिये होंगे उस
डगर
गर बची उन भेडियो से
तो खुले बिक्ता
है तेज़ाब
मनचले तो फेक देंगे
और होगी तेरी
काया ख़राब
कहानी यहाँ ख़त्म होती तो होती कुछ बात
यहाँ बेटियाँ
चढती हैं दहेज कि सौगात
जानती हूँ कर रही हूँ खता
लेकिन मैं कैसे
गलत हूँ ये मुझे बता
चाहूँ भी तो बुरी नज़र से तुझे बचा ना पाउंगी
इससे अच्छा तो
तुझे, इस संसार मैं ना लाउंगी
ना सोच कि करती र्हूँ बात मैं कितनी अजीब
सच यही है कि, तू बेटी है और यही
है तेरा नसीब
इतने पर भी है ये “भावना” मेरी
तू संसार मे आये, है कामना मेरी